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दीपक पटेल (टेस्ट) | 23/01/2022 |
महाभारत में दानवीर कर्ण के बारे में उल्लेख मिलता है कि कैसे उन्होंने जन्मगत प्राप्त हुए अपने अभिन्न एवं अभेद्य कवच और कुण्डल को दान में दिया।यह दान उन्होंने विवशता पूर्वक नहीं, वरन, सहर्ष अपने क्षत्रिय धर्म पालन के लिए किया था। अपने संकल्पानुसार वे प्रति प्रातः, सूर्योदय की बेला में वे उनके पास आए किसी भी याचक को मुहमाँगी वस्तु प्रदान करते थे। इसके चलते वो मात्र दानी नहीं बल्कि दानवीर कहलाये। सर्वोच्च स्तर का यह संरक्षण दानवीर कर्ण जैसे ही महान परोपकारी विभूतियों के लिए है जो लोक कल्याण को सर्वोपरि समझतें हैं।
राजा बलि को अपने गुरु शुक्राचार्य के द्वारा पूर्व चेतावनी मिल चुकी थी, की उनके पास जो वामन ब्राह्मण आ रहे हैं, वह स्वयं विष्णु हैं। परंतु इस बात ने भी बलि को उनके धर्म से विचलित ना किया अपितु उन्होंने भगवान की इच्छानुरूप तीन पग भूमि अर्पण करने की प्रितज्ञा ली। वामन देव ने प्रथम दो क़दमों में पूर्ण सृष्टि नापने के पश्चात् बलि से कहा, "बताओ राजन तीसरा पग कहाँ रखूँ। " बलि ने त्वरित अपना शीर्ष बढ़ा कर कहा, “प्रभु, अभी यह शेष है” । उनका दान इतना श्रेष्ठ था की सनातन धर्म की शब्दावली में “बलिदान” एक शब्द बन गया। अर्थात एक ऐसा दान जो की राजा बलि के समान उत्तम हो। ऐसे संरक्षकों हमारे अभिरक्षक।
नाम | संरक्षक इस दिनांक से |
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दीपक पटेल (टेस्ट) | 23/01/2022 |
महान धनुर्धर एकलव्य को ऐसे शिष्य के रूप में जाना जाता है, जो अपने गुरु द्रोणाचार्य को दक्षिणा में सर्वस्व देने को आतुर थे। जब गुरु द्रोण ने उनसे दाएँ हाथ का अँगूठा माँगा, तो बिना एक क्षण विचार किए, एकलव्य ने अपना अँगूठा काट कर, गुरु के चरणों में अर्पित कर दिया। उनका यह महान त्याग, पांडवो के अधर्म विरुद्ध युद्ध में अत्यंत सहाय रहा। एकलव्य की भाँती दान देने वालों को हम धर्म योद्धा की संज्ञा देते हैं।