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रोम-रोम में राम

10/04/2022
मिहिर जोशी बड़ौदा
त्रेता युग में, चैत्र शुक्ल पक्ष की ‘नवमी तिथि’ को श्री राम के जन्मदिवस पर ‘राम नवमी’ का त्यौहार मनाया जाता है उपरोक्त समस्त गुणों का उत्सव ‘राम नवमी’ पर्व है, ‘अधर्म पर धर्म की विजय’ का प्रतीक राम नवमी है, अपनी चेतना के विकास का चरम, राम नवमी है। किंचित हम यह विचार कर सकते हैं कि क्या हम इस कलि-काल में श्री राम का प्रेम प्राप्त करने में समर्थ हैं? किंतु मनुष्य को ज्ञात नहीं कि ‘श्री राम’ तो उसके मन में ही चेतना के रूप में वास करते हैं| अपने हृदय में उन्हें प्राप्त करने के लिए हमें केवल ‘साधना’ के पवित्र मार्ग पर अंतर्यात्रा की आवश्यकता है।
Ram navami
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

अयोध्या नगरी जिस दिन का उत्सुकता से इंतज़ार कर रही थी, आज वह दिन था। आज सबके प्रिय राजकुमार श्री राम का राज्याभिषेक था। किंतु उसी दिन एक ऐसी घटना घटी जिसकी कल्पना किसी ने न की थी| 

राज्याभिषेक एक राजकुमार के जीवन के सबसे प्रमुख प्रसंगों में से एक होता है| किंतु जिस शुभ दिवस अयोध्या के युवराज, श्री राम का राज्याभिषेक था उसी दिन वे अपने पिता द्वारा माता कैकेई को दिए गये वचन को, मात्र-पित्राज्ञा मान, वनवास को शिरोधार्य कर, राज्य, परिवार, संपत्ति, एवं समस्त सुखों का त्याग कर, स्मित मुख के साथ, पूर्ण सहजतापूर्वक चौदह वर्ष के वनवास के लिए निकल पड़े। महाराज दशरथ अपने वचन से विमुख होने के लिए तैयार थे, अपने प्रिय पुत्र के विरह की वेदना सहने से तो यह सहस्र कोटि सुगम कार्य था, किंतु श्री राम के जीवन मूल्य असाधारण थे। उनके पिता ने जो वचन उनकी दुमाता कैकेई को दिया था, उसका पालन श्री राम ने पूर्ण समर्पण एवं निष्ठा से किया| 

ये ही वे जीवन मूल्य हैं जिनके कारण श्री राम, ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ हुए। आइये ऐसे करुणानिधान श्रीराम के चरित्र के कुछ गुणों को निकट से देखें।

वचनबद्धता

रघुकुल रीत सदा चली आई, 

प्राण जाए पर वचन न जाई|”

(अर्थात् रघुकुल की यही रीत है, प्राण भले जाएँ, किंतु वचन मिथ्या ना जाए)

                                 स्त्रोत :     रामचरितमानस 

वचनबद्धता तो रघुकुल की रीत थी, अगर श्री राम पिता के वचन का पालन करने से विमुख हो जाते तो अपनी प्रजा, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या उदाहरण रखते? राज्य का सुख छोड़, सहर्ष वनवास स्वीकार करने वाले श्री राम के जीवन में वचन पालन आवश्यकता नहीं, धर्म था।

एक मनुष्य की अखण्डता ही उसके जीवन मूल्यों का निर्धारण करती है। मन,वचन एवं कर्म से एकत्व ही किसी मनुष्य की आंतरिक अखण्डता का परिचायक है।एवं यही अखण्डता उसे सशक्त कर असीमता की ओर अग्रसर करती है।

 

समरसता

“कंद मूल फल सुरस अति, दिए राम कहुँ आनि।

प्रेम सहित प्रभु खाए, बारंबार बखानि॥

(अर्थात् शबरी के स्वादिष्ट और रसीले बेर, श्री राम ने बारम्बार प्रशंसा करते हुए, प्रेम से खाए)

स्त्रोत :     रामचरितमानस 

 

शबरी के पिता एक भील राजा थे। विवाह के प्रति वैराग्य होने के कारण वे वन गमन कर गयीं। वहाँ वे मतंग ऋषि की सेवा कर अपना जीवन यापन कर रहीं थीं। ऋषि उनकी सेवा से अत्यंत प्रसन्न थे, मृत्यु समय पर ऋषि ने शबरी को आशीर्वाद देकर कहा, “पुत्री धैर्यपूर्वक साधना करते रहना, भगवान श्री राम यहाँ अवश्य पधारेंगे।” 

शबरी एक निर्मल हृदया स्त्री थीं, वे प्राणपण से श्री राम की प्रतीक्षा करने लगीं। एक शुभ दिवस जैसे ही शबरी को सूचना मिली कि दो तेजस्वी युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे अपने हृदय में जान गयीं कि उनके श्री राम आ गए, अपने गुरु की आज्ञानुसार, इस क्षण का उन्होंने वर्षों इंतज़ार किया था|  श्वेत केश व मुख की झुर्रियों के मध्य उनके नेत्र अश्रुओं से चमक उठे, वे दौड़कर गयीं, राम और लक्ष्मण को अपनी कुटिया में ले आयीं और दोनों भाइयों के पैर धोकर उन्हें विराजने का निवेदन किया| फिर वे एक टोकरी भरकर बेर ले आयीं, और एक-एक बेर चखकर दोनों भाइयों को देने लगीं| उनका स्नेह, भक्ति एवं भोलापन देखकर श्री राम की आँखों में भी अश्रु आ गए और उन्होंने बड़े प्रेम से शबरी के बेर खाए| जब शबरी ने उनसे पूछा कि, “प्रभु, मैं तो नीची जाति की हूँ, कृपया मुझे बताइए कि मैं आपकी भक्ति कैसे करूँ?” तब श्री राम ने शबरी को ‘नवधा भक्ति’ का ज्ञान दिया| 

(नवधा भक्ति – श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद-सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, आत्म-निवेदन)    

स्त्रोत: नवधा भक्ति  

शबरी ने केवल अपने स्नेह, भक्ति एवं सरलता से भगवान का मन जीत लिया।

 

करुणा 

                  नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
                सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥

  (अर्थात् हे नाथ, मैं दस सिर वाले रावण का भाई हूँ, राक्षस कुल में मेरा जन्म हुआ है| अतः       स्वभावत: मैं पाप प्रिय हूँ, जैसे एक उल्लू को अँधेरा प्रिय होता है|)

स्त्रोत : सुंदरकाण्ड 

 

विभीषण अपने भ्राता, रावण के, माता सीता के हरण जैसे पापकर्म एवं अहंकार से व्यथित हो, श्री राम की शरण में पहुँचे, उन्होंने श्री राम को दंडवत प्रणाम करके, जब उपरोक्त शब्द कहे, तब श्री राम ने करुणा से भरकर उन्हें उठाकर गले से लगा लिया एवं कहा कि किसी मनुष्य की पहचान कुल से नहीं, अपितु चरित्र एवं आचरण से होती है|

परमात्मा के समक्ष तो उंच-नीच का प्रश्न ही निरर्थक है| प्रत्येक प्राणी को समान जानना, जात-पात के भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता, स्नेह और सम्मान पूर्वक सबका सत्कार करना ही समरसता है| इस सरल गुण की आज भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि कल थी| 

 

 दृढ संकल्प

श्री राम जिससे युद्ध करने वाले थे वो कोई साधारण राक्षसराज नहीं था| 

रावण महाशक्तिशाली और महाज्ञानी था, उसके भय से तीनों लोक कांपते थे। रावण के भाई और पुत्र भी अत्यंत बलवान एवं शस्त्रविद्या में निपुण योद्धा थे| जब रावण माता सीता का अपहरण कर ले गया, तब श्री राम और लक्ष्मण, अरण्य में निवास कर रहे थे, अपने राज्य की राजसेना से सहायता लेना संभव नहीं था एवं समस्त वानर सेना के साथ समुद्र पार करने का कार्य भी अत्यंत कठिन था। 

किंतु श्री राम की सर्वोच्च शक्ति, उनका दृढ संकल्प था|

इसके विपरीत, रावण का अहंकार, उसके विनाश का कारण बना| निसंदेह वे ज्ञान और बल में अथाह थे, किंतु उन्हें अपनी शक्तियों का ऐसा अभिमान हुआ कि उन्होंने अपने कर्मों से स्वयं का पतन कर लिया| रावण के क्रोध ने प्रथम उसकी बुद्धि का विनाश किया, ततपश्चात् राज्य एवं अस्तित्व का नाश किया। 

श्री राम ने प्रेरणा दी कि जो मनुष्य, द्वेष और अभिमान की भावनाओं को पराजित कर, अपने शत्रु के प्रति भी विनम्रता एवं सम्मान का पालन सकता है, वही महान है| साहस, सात्विकता, एवं सधैर्य अग्रसर रहने पर ही उन्हें साथी, सहयोग और सदमार्ग मिलते गये| 

 

राम नाम की महिमा 

कथा है कि, एक समय कैलाश पर भगवान भोलेनाथ, माँ पार्वती के साथ भोजन करना चाहते थे परन्तु माता ने कहा कि, “मैं ‘विष्णुसहस्रनाम’ का पाठ कर रही हूँ पूर्ण होने के पश्चात् ही भोजन ग्रहण करुँगी|” कुछ क्षण प्रतीक्षा के पश्चात् शिवजी ने पुनः माता से भोजन हेतु आग्रह किया, भगवान क्षुधित थे, किंतु माँ का पाठ संपन्न नहीं हुआ था, तब शिवजी ने कहा,

राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने।।

(अर्थात् “हे वरानने, श्री राम का नाम मात्र ही पूरे विष्णुसहस्रनाम के तुल्य है|”) 

स्त्रोत : भक्ति  मंत्र 

तत्पश्चात्  शिव-पार्वती ने आनंदित हो, साथ में भोजन किया|

भोलेनाथ के लिए ‘श्री राम’ नाम-जप अति मूल्यवान है,  महादेव सदा ‘राम-नाम’ के  ध्यान में रत रहते हैं।

 

राम नवमी का महत्त्व

 त्रेता युग में, चैत्र शुक्ल पक्ष की ‘नवमी तिथि’ को श्री राम के जन्मदिवस पर ‘राम नवमी’ का त्यौहार मनाया जाता है उपरोक्त समस्त गुणों का उत्सव ‘राम नवमी’ पर्व है, ‘अधर्म पर धर्म की विजय’ का प्रतीक राम नवमी है, अपनी चेतना के विकास का चरम, राम नवमी है। 

किंचित हम यह विचार कर सकते हैं कि क्या हम इस कलि-काल में श्री राम का प्रेम प्राप्त करने में समर्थ हैं? किंतु मनुष्य को ज्ञात नहीं कि ‘श्री राम’ तो उसके मन में ही चेतना के रूप में वास करते हैं| अपने हृदय में उन्हें प्राप्त करने के लिए हमें केवल ‘साधना’ के पवित्र मार्ग पर अंतर्यात्रा की आवश्यकता है।

‘प्रयत्न ही प्रगति का मार्ग है|’ इस राम नवमी को आप इन गुणों को अपने जीवन से जोड़ने का प्रयत्न कर, ‘साधना ऐप’ के द्वारा अपने हृदय के मंदिर में श्री राम को धारण सकते हैं।

मिहिर जोशी बड़ौदा गुजरात के निवासी हैं। अक्टूबर 2021 में उनकी पहली किताब “पानी पूरी शॉट्स” प्रकाशित हुई है। धार्मिक संस्कारों से परिपूर्ण परिवार में पले-बढ़े मिहिर हनुमान भक्त हैं।

 

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